1 जून को लोकसभा के अंतिम चरण का मतदान होना है। इस चरण में उत्तरप्रदेश की 13 सीट में सियासी घमासान के लिए मतदान होने है। इसमें वर्तमान प्रधानमंत्री की सीट से लेकर मुख्तार अंसारी की दबदबे वाली सीट साथ ही उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की पूर्व संसदीय सीट घमासान के केंद्र में हैं।इसके अलावा चंदौली, मिर्जापुर, बलिया,घोसी, राबर्ट्सगंज, सलेमपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज और बांसगांव शामिल हैं। इन 13 सीटों में जाति और धार्मिक दोनो गणित चर्चा में रहते है जिन्हे साधने सभी पार्टी दिन रात से कोशिश कर रही है।साथ ही इन सीटों की एक और विशेषता यह है कि ये सीट या तो योगी के प्रभाव क्षेत्र की है या तो मुख्तार अंसारी की तो इनमें बनारस से सटी सीट में मोदी प्रभाव भी खूब दिख रहा है।पिछले चुनाव में इन 13 सीट में 11 से एनडीए के सांसद संसद में है जिनमें से 9 भाजपा और 2 अपना दल के है।
बनारस गंगा का धाम और घाटों की सुंदरता के साथ पिछले साल 10 साल से भारत के प्रधानमंत्री की सीट भी है। बनारस के लोग कहते नजर आते है हम सांसद नही प्रधानमंत्री चुनते है। प्रधानमंत्री का बनारस दौरा इस साल लगातार बना हुआ है। प्रधानमंत्री कहते नजर आ रहे है कि" मैं अब काशी का सांसद नहीं काशी के बेटे के रूप में स्वयं को पता हूं।" काशी में प्रियंका गांधी और डिंपल यादव ने भी संयुक्त रूप से रोड शो किया साथ ही काल भैरव की पूजा की।काशी को अखिलेश और राहुल भारत का क्योटो कहकर तंज कस रहे है। फिर भी यह सीट भारत में भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट है। यहां कांग्रेस के अजय राय मार्जिन की लड़ाई लड़ रहे है। भाजपा यहां से 5 लाख से अधिक अंतर से जीतने का लक्ष्य बनाए हुए है।
गाजीपुर की सीट एक ऐसी सीट है, जहां जात पात के आधार पर मतदान सबसे मतदाताओं की पहली प्राथमिकता सीट है। यह सीट मुख्तार इंसान की है और इस क्षेत्र में जहां जाओ वहां सिर्फ मुख्तार की चर्चा है। चार अरसे बाद इस सीट में मुख्तार नहीं दिखेंगे लेकिन उनके बड़े भाई सपा की सीट से उनकी कमी पूरे करते नजर आ रहे है। इस सीट से भाजपा की और से पारसनाथ राय चुनाव लड़ रहे है , जो मनोज सिंह का स्थान ले रहे है। मोदी ने भाषण में आरक्षण मुस्लिम को देने का डर दिखाया तो अखिलेश ने दलित वोट को खींचने के लिए बसपा भाजपा की अंदरूनी मिलन की बात कह वोट खींचने की कोशिश की है।हालांकि यह सीट सपा में मजबूत दिख रही है।लेकिन पिछले चुनावों में भाजपा ने वोट प्रतिशत 40% के पास पहुंचा लिया है,जो एक सर दर्द साबित हो सकता है।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की पूर्व संसदीय सीट पर भाजपा की टिकट पर भोजपुरी अभिनेता रविकिशन चुनाव लड़ते दिखेंगे तो सपा उनके सामने काजल निषाद की मदद से सीट छीनने की कोशिश में लगी है। यहां पर अखिलेश और प्रियंका गांधी ने संयुक्त रैली भी की है। यदि निषाद के वोट एकतरफा सपा में पड़ते है तो यहां का चुनाव का परिणाम अचंभित कर सकता है। हालांकि इस सीट में ब्राह्मण , ठाकुर और भूमिहार जाति के मतदाता की अच्छी खासी संख्या है जो भाजपा के कोर वोटर्स है।साथ ही गोरक्षनाथ का पीठ का भी साथ भाजपा को मिलता है। ऐसे में भाजपा की मजबूत पकड़ यहां दिख रही है।
ओमप्रकाश पासवान के लिए जाने जाने वाली बांसगांव सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है ।2009 से लगातार दो बार बीजेपी यहां से चुनाव जीत रही है। बांसगांव के वर्तमान सांसद भाजपा से कमलेश पासवान हैं।यह गोरखपुर के अंतर्गत आती है इसलिए योगी का भी अच्छा खासा प्रभाव यहां दिखता है जो कि भाजपा के लिए इसे एक सुरक्षित सीट बनाता है।पिछली बार चुनाव हारे सदल प्रसाद इस बार कांग्रेस की सीट से बांसगांव में कमलेश से लोहा लेते नजर आएंगे।
बलिया सीट में दलित मतदाता जिसकी ओर सीट उसकी ओर जाते दिख रही है। क्योंकि ढाई लाख यादव मतदाता हैं और एक लाख मुस्लिम सपा के वोटर्स हैं तो ढाई लाख के करीब राजपूत मतदाता भाजपा के नीरज शेखर के पीछे मजबूती से खड़े हैं।साथ ही ब्राह्मण भी भाजपा का सपोर्ट करते नजर आ रहे है। इस बार भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काट कर नए प्रत्याशी नीरज शेखर को प्रत्याशी बनाया है जिनके पिता चंद्रशेखर राज्यसभा सांसद है। इस लोकसभा सीट पर सपा ने पिछला चुनाव बहुत कम वोटों से हारा था इसलिए सनातन पांडे पर फिर से दांव खेला है।यह अंसारी परिवार के प्रभाव वाली सीट है।
अंसारी परिवार के प्रभाव की एक और सीट घोसी में NDA के घटक दल सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर ओमप्रकाश राजभर के बेटे मैदान में है । वर्तमान में यह सीट बसपा के अतुल राय के पास है।लेकिन इस बार में वह मैदान में लड़ाई से खूब दूर दिख रही है।इस बार सपा की और से राजीव राय मैदान संभाल रहे है।
राजनाथ सिंह की आरंभिक कर्मस्थली और फूलन देवी की सीट मिर्जापुर से अपना दल की अनुप्रिया पटेल तीसरी बार सांसद बनने के लिए मैदान तैयार कर रही है। कुर्मी वोटर्स के प्रभाव क्षेत्र में वे मजबूत भी दिख रही है।उनका सामना सपा के रमेश चंद्र बिंद करते नजर आएंगे।
राबर्ट्सगंज की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है इस सीट पर अपना दल पार्टी की रिंकी कोल लड़ रही हैं। साथ ही सपा ने भाजपा से सांसद रहे छोटेलाल खरवार को टिकट दिया है। मिर्जापुर की रैली के समय प्रधानमंत्री मोदी ने इस सीट को साधते हुए कप प्लेट से नाता जोड़ते हुए मतदाता को साधने की कोशिश की।हालांकि यह सीट किसी भी ओर करवट बदल सकती है।क्योंकि खरवार वही है जिन्होंने 2014 में इस सीट में कमल खिलाया था।
देवरिया ,2014 में यहां से कद्दावर भाजपा नेता कलराज मिश्र जीते थे। उसके बाद रमापति राम त्रिपाठी ने 2019 में भाजपा को जीत दिलाई। यहां लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा है। लेकिन अब यह योगी के दबदबे वाली सीट में से एक है।सामान्य वर्ग के वोट ज्यादा होने से यह सीट भाजपा के लिए मजबूत गढ़ है। इस बार भाजपा शशांक मणि कांग्रेस के अखिलेश प्रताप के साथ सीधी टक्कर में है।
महराजगंज नेपाल सीमा से सटा हुआ जिला है जो कि गोरखपुर से अलग होकर बना है यह सीट भी मुख्यमंत्री योगी के प्रभाव क्षेत्र की सीटों में से एक है।2014 से यहां भाजपा के पंकज चौधरी जीत रहे है और इस बार भी मैदान में है जिनके सामने कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष वीरेंद्र चौधरी ताल ठोंकते नजर आ रहे है।
सलेमपुर सीट से तीसरी बार सांसद बनने रविंद्र कुशवाह सपा के रामशंकर राजभर से और बसपा के भीम राजभर से टक्कर में है। सामान्य वर्ग की संख्या बल और योगी की पैठ इसे सुरक्षित बनाती है।
बनारस से लगे हुए चंदौली सीट में भाजपा के महेंद्र नाथ पांडे अजेय है और तीसरी बार मैदान में है जो कि सपा वीरेंद्र सिंह और बसपा के सत्येंद्र मौर्य के टक्कर में है। अनुसूचित जाति और जनजाति दोनो वर्ग के वोटर्स यहां बड़ी संख्या में है जो यदि सपा के साथ जाते है तो भाजपा के लिए इस सीट पर समस्या बन सकते है।
संख्या की दृष्टि से उत्तरप्रदेश की अंतिम सीट जो कि भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली है। नेपाल सीमा से जुड़ती है। इस सीट में ब्राह्मण ,मुस्लिम ,दलित ,पिछड़ा लगभग समान संख्या में मौजूद है किसी एक का भी किसी पार्टी में एक साथ गिरना दूसरी के लिए सर दर्द होगा। कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट अब भाजपा का गढ़ हो चुकी है। इस बार मौजूदा सांसद विष्णु दुबे भाजपा की ओर से चुनाव लड़ रहे है तो पिंटू सैथवार सपा की सीट से लड़ रहे है।
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